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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःबिखरे मोती


आहुति

(3)
एक दिन बात ही बात में राधेश्याम ने जगमोहन से पूछा "भाई ! वह किसकी लड़की थी जो उस दिन तांगे पर से गिर पड़ी थी ?"

जगमोहन ने बतलाया कि वह पंडित नंदकिशोर तिवारी की कन्या है ! पढ़ी-लिखी, गृह-कार्य में कुशल और सुन्दर होने पर भी धनाभाव के कारण वह अभी तक कुमारी है । बेचारे तिवारी जी ५०) माहवार पर एक आफ़िस में नौकर हैं। बड़ा परिवार है ५०) में तो खाने-पहिनने को भी मुश्किल में पूरा पड़ता होगा । फिर लड़की के विवाह के लिए दो-तीन हज़ार रुपये, कहाँ से लावें ? कान्यकुब्जों में तो बिना व्हरौनी के कोई बात ही नहीं करता। कष्ट में हैं बेचारे। लड़की सयानी है। पढ़ा-लिखाकर किसी मूर्ख के गले भी तो नहीं बाँधते बनता।"

एक बार तिवारी जी पर उपकार करने की सद्भावना से राधेश्याम जी का हृदय आतुर हो उठा; किंतु तुरंत ही मनोरमा की स्मृति ने उन्हें सचेत कर दिया। तिवारी जी पर उपकार करना, मनोरमा को हृदय से भुला देना था। राधेश्याम को जैसे कोई भूली बात याद आ गई हो, वे अपने आप ही सिर हिलाते हुए बोल उठे, "नहीं, यह कभी नहीं हो सकता ।" राधेश्याम के हृदय की हलचल को जगमोहन ने ताड़ लिया। वार करने का उन्होंने यही उपयुक्त अवसर समझा, संभव है, निशाना ठीक पड़े!
जगमोहन-"तुम क्या कहते हो राधेश्याम? है न लड़की बड़ी सुंदर? पर बिचारी को कोई योग्य वर नहीं मिलता। अगर तुम इससे विवाह कर लो तो कैसा रहे?"
राधेश्याम उदासीनता से बोले, भाई! लड़की सुंदर तो जरूर है; पर मैंने तो विवाह न करने की प्रतिज्ञा कर ली है।

जगमोहन उत्साह भरे शब्दों में बोले, अरे छोड़ो भी! ऐसी प्रतिज्ञा तो पत्नी के देहांत के बाद सभी कर लेते हैं। उसके माने यह थोड़े है कि फिर कोई विवाह करता ही नहीं। अरे भाई! जन्म और मृत्यु जीवन में लगा ही रहता है। संसार में जो पैदा हुआ है यह मरेगा, जो मरा है फिर आएगा। रंज किसे नहीं होता? किंतु उस रंज के पीछे बैरागी थोड़े बन जाना पड़ता है। और फिर अभी तुम्हारी उमर ही क्या है? यही न पैंतीस-छत्तीस साल की, बस? जीवन भर तपस्या करने की बात है। बिना स्त्री के घर जंगल से भी बुरा रहता है। ब्रजेश की माँ चार-ऐ दिनों के लिए मैके चली जाती है तो घर जैसे काट खाने दौड़ता है।

राधेश्याम बोले, यह कोई बात नहीं, जगमोहन! घर से तो मुझे कुछ मतलब नहीं है। जिस दिन मनोरमा का देहांत हुआ, मेरे लिए 'घर' घर ही नहीं रह गया। बात इतनी है कि बच्चे की देखभाल करने वाला अब कोई नहीं है। अम्मा थीं, तब तक तो कोई बात न थी। पर अब बच्चे की कुछ भी देखभाल नहीं होती। नौकरों पर बच्चे को छोड़ देना उचित नहीं, और मैं कितनी देखभाल कर सकता हूँ, तुम्हीं सोचो? परिणाम यह हुआ कि बच्चा दिनों-दिन कमजोर होता जा रहा है।

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राधेश्याम का विवाह कुन्तला के साथ हो गया। उनकी उजड़ी हुई गृहस्थी में बहार आ गई। मनोरमा के बंद कमरे का ताला खोलकर उनके चित्रों पर हलकी रंगीन जाजिम का परदा डाल दिया गया। उस घर में फिर से नूपुर की मधुर ध्वनि सुनाई पड़ने लगी। चतुर गृहिणी का हाथ लगते ही घर फिर स्वर्ग हो गया। कुन्तला की कार्य-कुशलता और बुद्धि की कुशाग्रता पर राधेश्याम मुग्ध थे। कुन्तला के प्रेम के प्रकाश से उनका हृदय आलोकित हो उठा। अब वहाँ पर मनोरमा की घुँधली स्मृति के लिए भी स्थान न था, वे पूर्ण सुखी थे।

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